कुछ खुस हु hindi poem - Hindi mey

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कुछ खुस हु hindi poem

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कुछ खुस हु

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कुछ खुस हु


कुछ खुस हु
कुछ उदास हु

मंजील हैं सामने
फिर भी निरास हु

हु नीर से भरा हुआ
फिर भी अमिट प्यास हु

जिन्दा हु दोस्तो पर
मिटती हुई साँस हु

हु मुस्कुराह से सम्पन्न
फिर भी तन्हाइयो में

दुखी हूं, बदहवास हु
जो कहते है दोस्त
उनके लिए  बस
एक जरिया हु, एक क्याश हु
न जाने कहा ह वो

जिसके लिए कुछ ख़ास हु
जिसके लिए कुछ ख़ास हु
   
                                -Vivek Bhagat

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