कौन थी वो जो मुस्कुरा कर चली गई
आखो के रास्ते दिल में समा कर चली गई
न थी तमन्ना जब जीने की बिल्कुल भी
वो पल में सदिया जिला कर चली गई
कौन थी वो जो मुस्कुरा कर चली गई
हसरत-ए-दिल जगा कर चली गई
आरजु थी कि द्वख लू नक्श उसके पर
वो दुपट्टे से चेहरा छुपा कर चली गई
कौन थी वो जो मुस्कुरा कर चली गई
दिलो के खेल में मुझे हरा कर चली गई
सालो लग जाते हैं किसी को एक लब्ज कहने में
दो पल में वो अपना मुझे बना कर चली गई
कौन थी वो जो मुस्कुरा कर चली गई
मुझे इश्क का जहाँ दिखा कर चले गई
उलझा हु जिसे अब तक मैं समझने में
इशारों में जाने क्या बता कर चली गई
कौन थी वो जो मुस्कुरा कर चली गई
जो आँखे खोली मैने तो
मुझ पर खिलखिला कर चली गई
ये सब था एक हसीन सपना
जो रात मुझे दिखा कर चली गई
-Vivek Bhagat
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